समता मूलक समाज की शिक्षा प्रणाली - 1 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

समता मूलक समाज की शिक्षा प्रणाली - 1

समता मूलक समाज की शिक्षा प्रणाली - 1


समतामूलक से तात्पर्य है कि जिसमें शोषण ना हो भारत दुनिया का सबसे बड़ा जनतन्त्र है जनसंख्या की दृष्टि से भी विश्व में दूसरे स्थान पर है ।अरबों की आबादी को एक सूत्र में बाँधने का दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है।


इतने बड़े देश में विन्न - भिन्न भाषा बोल , सामाजिक संरचना भौगोलिक ऐतिहासिक सम्पदा को पिरोकर रखने के लिए शिक्षा एक शशक्त माध्यम है जिसमें भिन्न - भिन धर्म , जाति सामाजिक एवं सभ्यताओं से ओत - प्रोत है ।


समय - समय पर हमारे मनीषियों तथा पूर्वजों ने अपने चिन्तन के द्वारा इस विशाल भारत माता को पिरोये रखने का साहसिक प्रयास करते रहे है, जैसे आदि शंकराचार्य जी ।


भारत के जनतन्त्र को एक सूत्र में बाँधे रखने के लिए एक समता मूलक एवं धर्म निरपेक्ष समाज के संरचना के सिद्धान्त को अपनाया जा सकता है, इसके लिए एक ऐसी भाषा का अनुसरण करना होगा जिसमें सर्वजाति, सर्वहित , सर्वधर्म सम्भाव की संरचना हो ।


इसके लिए सर्वप्रथम इसको अपने पूरे भारतीय समाज को एक ऐसी शिक्षा देने की आवश्यकता है जिससे गैर बराबरी की भावना का पराक्षेप कर सके।


इसके लिये एक जनसम्पर्क भाषा के माध्यम की आवश्यकता है जिसको सभी लोग पढ़ सकें, बोल सके, तथा अपने समाजिक परिवेश एवं भाईचारे को बनायें रखें।


किसी भी बड़े एवं विशाल देश जैसे- भारतवर्ष जो तमाम तरह की विविधताओं से भरा पड़ा है, उसको एक सूत्र में बांध रखने के लिये एक सदन एवं सरल जनसंम्पर्क भाषा का होना आवश्यक है ।


उदाहरण के लिये पूरे भारतवर्ष के इतिहास को देखा जाये तो यहाँ के शासक वर्ग ने अपनी शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिये अपने अपने ढंग से प्रयास किये।


मुगल शासक जब भारतवर्ष पर शासन करते थे तो उन्होंने उर्दू भाषा के विकास और प्रसार की उचित व्यवस्था पढ़ने पढ़ाने की करते रहे । उर्दू भाषा यहाँ के निवासियों द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी भाषा के निकट थी ।


उन्होंने अरबी फारसी नहीं पढ़ाया इसी तरह से जब ब्रिटिश साम्राज्यवादियों का शासन भारत घर आया तो उन्होंने भी इतने बड़े विशाल भारत को एक सूत्र में बाँधने के लिये अंग्रेजी भाषा का प्रचार प्रसार किया ।


यह सब क्या सम्भव हुआ कि उपरोक्त भाषाओं को विकशित प्रसारित प्रचारित करने के लिये राजाश्रय प्राप्त था । जिस भाषा को राजाश्रय प्राप्त होगा अर्थात जो भाषा रोजी रोटी से जुड़ी होगी उसको नागरिक पढ़ने लिखने के लिये हमेशा जिज्ञासू और लालायित रहता है ।

व्यवहार में देखा गया है कि हमारे पूर्वजों ने हमें तथा हम अपने आगे की सन्तानों को उपरोक्त भाषा को अपना सब तन मन न लगाकर पढ़ाते हैं । यह मानव स्वभाव है कि अपने स्वार्थ के प्रति सदैव सतर्क रहता है ।


अतः समता मूलक समाज को संरचना के लिये हमें अपने नागरिकों को एक जनसमार्क भाषा का जो हिन्दी होगी । चूंकि वह पढ़ने , बोलने , सीखने में अति सहज एवं सरल है ।


व्यवहार में देखा गया है कि चाहे वह दक्षिण भारतीय हो, चाहे बंगाली या सिक्ख या आसामी हो, आसानी से टूटी फूटी हिन्दी बोल लेते हैं समझ लेते हैं तथा हिन्दी के सिनेमा गानों को गा भी लेते है ।


इसके लिये हमें विभाषा के सिद्धान्त का ही व्यवहार में लाना होगा ।


हिन्दी को एक अनिवार्य भाषा तथा दूसरी क्षेत्रीय भाषा जैसे तमिल , तेलगू , कन्नड , बंगाली , असमिया इत्यादि तथा तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिये। यह सब सिखने के अलावा अन्य भाषाओं को कोई कम महत्व है ।

उपरोक्त सभी भाषाओं के साहित्यिक , ऐतिहासिक एवं भौगौलिक उनके मानीषियों तथा चिन्तकों द्वारा प्रतिपादित की गयी है जिसको जानने समझने की आवश्यकता सभी को है । कोई भी भाषा किसी भी भाषा में यही या छोटी नहीं है ।


जनसम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी की प्रचारित प्रसारित करने के लिये अपने इतिहास से सबक लेना चाहिए और सघ लोक सेवा आयोग अन्य सभी अभिलेखो एवं आयोगों के लिये हिन्दी अनिवार्य विषय रहे ।


चूंकि अंग्रेजी एक सार्वभौगिक भाषा बन चुकी है अतः उसकी अवहेलना करने से हम अपनी पीढ़ी को दुनिया की विकास की गति से जोड़ नहीं पायेगें ।


समता मूलक समाज की संरचना के लिए पूरे देश में एक ही शिक्षा प्रणाली लागू किया जाए । इस सम्बन्ध में केन्द्रिय सरकार ने केन्द्रिय विद्यालय संगठन की स्थापना करके ऐसे तमाम विद्यालय पूरे भारत वर्ष में खोल रखा जिसमें किसी भी क्षेत्र / ग्राम का नागरिक प्रवेश पाने के लिए लालायित रहता है ।


इसी को आधारभूत मानकर पूरे भारत वर्ष में इसी तरह शिक्षा प्रणाली का विकास किया जाए। साथ ही किसी भी समाज / क्षेत्र में पाँच वर्ष से कम के बच्चों का प्रवेश किसी भी विद्यालय न किया जाए ।


उसको अपने जीवन के शैशव मूल्यों में स्वतन्त्र विचरण करने दिया जाए । जिससे उसके जीवन की एक सीढ़ी सहज एवं सरल ढंग से व्यतीत हो सके ।

क्रमशः....


अगला भाग
समता मूलक समाज की शिक्षा प्रणाली - 2

(लेख कैसा लगा, पढ़ कर समीक्षा अवश्य करें)